गिले शिकवे दिल से न लगा लेना,
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कभी रूठ जाऊँ तो मुझको मना लेना..
कल का क्या पता हम हो न हो,
इसलिए जब भी मिलूँ प्यार से गले लगा लेना…
काश ! कभी तुम मुझे गले लगाकर कहो..
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इतना क्यों डरते हो पागल,
मैं तुम्हारी ही तो हूँ…
दर्द भी वही देते हैं, जिन्हें हक दिया जाता है..
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वर्ना गैर तो धक्का लगने पर भी माफी माँग लेते हैं…
आँसू छुपा रहा हूँ तुमसे,
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दर्द बताना नहीं आता..
बैठे-बैठे भीग जाती है पलकें,
दर्द छुपाना नहीं आता…
केवल अल्फाज ही नहीं लिखते,
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उनमें दर्द भी पिरोते हैं..
हम वो शायर हैं साहब,
जो कलम से भी रोते हैं…
अपनी बातों को मनवाने के लिए लड़ता हूँ..
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मैं आज भी छोटा बच्चा हूँ, रो पड़ता हूँ…
रोज-रोज जलते हैं,
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फिर भी खाक नहीं होते..
अजीब हैं कुछ ख्वाब भी,
बुझकर भी राख नहीं होते…
सुना बहुत था,
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मगर आज मैंने जाना भी..
बहुत मुश्किल है,
खुशी के बगैर हँसना भी…
जीत लेता हूँ हजारों लोगों का दिल शायरी करके..
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लेकिन लोगों को क्या पता, अन्दर से कितना अकेला हूँ मैं…
नखरे तो हम मरने के बाद भी करेंगे..
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तुम जमीन पर चलोगे और हम कंधों पर…